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अरावली परà¥à¤µà¤¤ की तराई में हरियाली से à¤à¤°à¤ªà¥‚र नोमा व सà¥à¤–डी नदी या बडी नदी के मधà¥à¤¯ व जोधपà¥à¤° उदयपà¥à¤° मेगा हाईवे कà¥à¤°. १६ की मà¥à¤–à¥à¤¯ सडक पर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ है देसà¥à¤°à¥€ अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤ पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ देवसà¥à¤°à¥€ नगर। मारवाड व मेवाड को जोडने वाला à¤à¤¤à¤¿à¤¹à¤¾à¤¸à¤¿à¤• गावं ,वीरों व संतों का गांव, जोधपà¥à¤° डिवीजन व पाली जिले में गोडवाड का पà¥à¤°à¤¥à¤® गांव देवसà¥à¤°à¥€ इतिहास पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ राठौड व राणाओं का आधिपतà¥à¤¯à¤µà¤¾à¤²à¤¾ गांव रहा।
देसà¥à¤°à¥€ गांव का नाम ‘देवसà¥à¤°à¥€â€™ था, जिसका पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£ जैन पेढी पर अंकित है। ‘शà¥à¤°à¥€ ॠषà¤à¤¦à¥‡à¤µ à¤à¤—वान जैन पेढी देवसà¥à¤°à¥€ à¤à¤µà¤‚ पंचायत à¤à¤µà¤¨â€™ नाम था। à¤à¤—वान के तिगडे पर à¤à¥€ लेख में देवसà¥à¤°à¥€ गांव अंकित है। कालकà¥à¤°à¤® में यह अपà¤à¥à¤°à¤‚श होकर देसà¥à¤°à¥€ हो गया। वि. स. १८३० तक ठाकà¥à¤° वीरमदेव सोलंकी का देसà¥à¤°à¥€ पर राजà¥à¤¯ था और यह मारवाड के अधीन था।
वीर वंशावली में सतरवें आ. शà¥à¤°à¥€ वृदà¥à¤§ देवसà¥à¤°à¥€ हà¥à¤à¥¤ आप शà¥à¤°à¥€ ओसिया नगर से उगà¥à¤° विहार कर , वीर संवतॠ५८५ में ३०० शà¥à¤°à¤¾à¤µà¤•à¥‹à¤‚ के साथ नाडà¥à¤²à¤¾à¤ˆ होकर देवसूरी किनारे पर शà¥à¤°à¤¾à¤µà¤•à¥‹à¤‚ को बसाया। उस गांव के शà¥à¤°à¤¾à¤µà¤•à¥‹à¤‚ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ बसा हà¥à¤† गांव देवसà¥à¤°à¥€ कहलाया। आज देसà¥à¤°à¥€ में ‘नोमा माता’ का मंदिर है, जो शिलà¥à¤ª à¤à¤µà¤‚ कला की दृषà¥à¤Ÿà¤¿ से जैन देरासर है। इन सà¤à¥€ से जà¥à¤žà¤¾à¤¤ होता है कि कल का देवसà¥à¤°à¥€ ही आज का देसà¥à¤°à¥€ है। वीर दà¥à¤°à¥à¤—ादास राठौड का ससà¥à¤°à¤¾à¤² देसà¥à¤°à¥€ में था।
मासà¥à¤Ÿà¤° छोटालालजी शरà¥à¤®à¤¾ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤°, यहां का इतिहास देसà¥à¤°à¥€ पर शासनकरà¥à¤¤à¤¾ थे बोरणा राजपूत इनà¥à¤¹à¥€à¤‚ के दो à¤à¤¾à¤ˆà¤¯à¥‹à¤‚ के नाम थे देवसिंह (देवा) व सà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤‚ह (सूरा)। इनà¥à¤¹à¥€à¤‚ दोनों के नाम पर गांव का नाम पडा देवसूरी। बोरणा ठाकà¥à¤°à¥‹à¤‚ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ बसाया गया देवसूरी का मूल गांव नोमा माता मंदिर के उतà¥à¤¤à¤° में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ था। ठाकà¥à¤° साहब के दो पà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ के साथ चार पà¥à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ थीं। जो इतिहास के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° समाधि में सà¥à¤¥à¤¿à¤° होकर बाद में देवियां बन गईं। कà¥à¤°à¤®à¤¶: रेवलीबाई – रेली माता नवलीबाई – नोमा माता, जो बोराणा जैन व ठाकà¥à¤°à¥‹à¤‚ की कà¥à¤²à¤¦à¥‡à¤µà¥€ कही जाती है, तीसरी चौथीबाई – चौधरा माता – उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ छतà¥à¤¤à¥€à¤¸ कौम वाले उनकी कसम व मानता मानते हैं, चतà¥à¤°à¥à¤¥ शैलीबाई शेली माता, आज जहां इनका मंदिर हैं, वह जगह शैली माता के चमतà¥à¤•à¤¾à¤° के रूप में पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ है आस-पास कहीं पानी की धारा नहीं बहती मगर मंदिर के पास १२ महीने पानी की धारा बहती रहती है।
बोरणा ठाकà¥à¤°à¥‹à¤‚ के पशà¥à¤šà¤¾à¤¤ देवसà¥à¤°à¥€ पर मादरेसा चौहान का राज आया, जो मेवाड के महाराणाओं के मातहत थे, इसलिठउन दिनों देसà¥à¤°à¥€ मेवाड का à¤à¤¾à¤— बन गया। देसà¥à¤°à¥€ की नाल से ही सिरà¥à¤« मेवाड़ में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ होता था। इस कारणवश बाद में महाराणा ने मदरेसा चौहान के à¤à¤¾à¤¨à¤œà¥‡ सोलंकियों को देसà¥à¤°à¥€ का राजà¤à¤¾à¤° दे दिया। सोलंकियों ने अपने मामा मादरेसा चौहानों की षडयंतà¥à¤° दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ हतà¥à¤¯à¤¾ करवाके देसà¥à¤°à¥€ पर अपना आधिपतà¥à¤¯ जमाया।
सोलंकियों ने अपना महल (रावला) अलग से बनवाया, जिसमें आज देसà¥à¤°à¥€ तहसील व मà¥à¤¨à¥à¤¸à¤¿à¤« कोरà¥à¤Ÿ है। सोलंकियां ने अपने राजà¥à¤¯ का विसà¥à¤¤à¤¾à¤° उतà¥à¤¤à¤° में सोमेसर व बà¥à¤¸à¥€ हनà¥à¤®à¤¾à¤¨à¤œà¥€ मंदिर तक किया था। इनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने सà¥à¤®à¥‡à¤° की नाल में मà¥à¤—ल बादशाह औरंगजेब को परासà¥à¤¤ किया था। सोलंकी à¤à¥€ मेवाड महाराणा के अधीन थे।
उस समय जोधपà¥à¤° पर महाराजा जसवंसिंहजी विराजमान थे। à¤à¤• समय रात के दूसरे पहर में महाराजा व महारानी किले के पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤° पर बैठकर बातें कर रहे थे, उस समय अरावली परà¥à¤µà¤¤ पर रानीजी को à¤à¤• दीपक जलता हà¥à¤† दिखा। रानी जी बोली कि à¤à¤¸à¤¾ à¤à¥€ कोई राजा है, जिसके राज में अà¤à¥€ तक दीपक जल रहा है। महाराजा को यह बात सहन नहीं हà¥à¤ˆ और उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने रानी को देशनिकाला दे दिया। महारानी अपनी दासियों के साथ दीपक की सीध में निकल पडी, जो कà¥à¤®à¥à¤à¤²à¤—ढ पर जल रहा था। आप कà¥à¤®à¥à¤à¤²à¤—ढ पहà¥à¤à¤šà¤•à¤° महाराणा को पूरी दासà¥à¤¤à¤¾à¤¨ सà¥à¤¨à¤¾à¤ˆà¥¤ महाराणा ने इनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ बेटी बनाकर शरण दी। दूसरी ओर जोधपà¥à¤° महाराजा को जब इस बात की खबर लगी तो वे कà¥à¤®à¥à¤à¤²à¤—ढ पर आकà¥à¤°à¤®à¤£ करने निकल पडे।
देसà¥à¤°à¥€ के बाहर घाणेराव के नाके पर मà¥à¤•à¤¾à¤¬à¤²à¥‡ की ठानी, लेकिन कà¥à¤®à¥à¤à¤²à¤—ढ ऊंचाई पर होने से जीतना असंà¤à¤µ सा लगा। उधर, रानी ने महाराजा को संदेश à¤à¥‡à¤œà¤¾ कि à¤à¤¾à¤¡à¥€ कटाई à¤à¤¾à¤²à¥€ मिले, रण कटाये राज। कà¥à¤®à¥à¤à¤²à¤—ढ रा कांगरे राजा मचà¥à¤›à¤° वे ने आव। संदेश पढकर महाराज ने महाराणा को कहलवाया कि आप मेरी à¤à¤¾à¤²à¥€ रानी को वापस जोधपà¥à¤° à¤à¥‡à¤œ दें। मैं कà¥à¤·à¤®à¤¾à¤ªà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥à¥€ हूà¤à¥¤ तब महाराणा का दूत संदेश लेकर आया कि आप जमाईराजा बनकर कà¥à¤®à¥à¤à¤²à¤—ढ पधारियें। मेरी पà¥à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को सहरà¥à¤· विदा-करूंगा। महाराजा के पधारने पर शाही सà¥à¤µà¤¾à¤—त हà¥à¤†à¥¤ महाराणा ने दहेज के बतौर हाथी घोडे नौकर चाकर, हीरे जवाहरात व देसà¥à¤°à¥€ का पूरा आंवल विà¤à¤¾à¤— महाराजा को दे दिया। इस पर सीमा निरà¥à¤§à¤¾à¤°à¤£ का फारà¥à¤®à¥‚ला इस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° रहा आंवल-आंवल राणाजी, बावल-बावल राजाजी। बाद में जोधपà¥à¤° महाराजा ने देसà¥à¤°à¥€ को गà¥à¤°à¥€à¤·à¥à¤®à¤•à¤¾à¤²à¥€à¤¨ राजधानी बनाया, à¤à¤µà¥à¤¯ महल बनाये। जोधपà¥à¤° महाराज को ‘नवकोटि’ महाराज की पदवी थी। यहां कà¥à¤² चार जैन मंदिर हैं। सà¤à¥€ संपà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤•à¤¾à¤²à¥€à¤¨ हैं।