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चित्तौड़गढ़ & जैन धर्म - 5. भामाशाह (दानवीर जैन श्रेष्ठी)

Published on Friday, January 19, 2018 by Dr A L Jain | Modified on Monday, February 19, 2018

भामाशाह एक ऐसा नाम है जिसे सुनकर हर किसी के मन में श्रद्धा भाव उत्पन्न होता है, उनकी दानशीलता एवं देश के प्रति समर्पण के लिए। गुजरात में जो सम्मान वस्तुपाल-तेजपाल के नाम का है वही सम्मान भामाशाह का मेवाड़ में है। भामाशाह जैन कावड़िया परिवार के भारमल जी के बेटे थे जो स्वयं महाराणा सांगा एवं उदयसिंह के समय क्रमशः किलेदार एवं प्रधान के पद पर रहे। भामाशाह का जन्म आषाढ़ शुक्ल 10 संवत् 1604 तदनुसार ई. सन् 1547 में हुआ था।

भामाशाह एवं उनके भाई ताराचन्द बड़े वीर थे। उन्होंने मालवा के शाही शासन पर चढ़ाई की थी और वहां से प्राप्त धन को महाराणा प्रताप को यह कहते हुए समर्पित कर दिया था कि यह पहली किश्त है, आप सब चिन्ताएं मेवाड़ की रक्षा करें। अर्पित किया हुआ धन 20,000 स्वर्ण की अशर्फियाँ और 20 लाख रुपया था जो 25 हजार सैनिकों के 12 वर्ष तक निर्वाह के लिए काफी था।

भामाशाह की बहादुरी और देशभक्ति देखकर राणा प्रताप ने रामा महसाणी को हटाकर उन्हें प्रधान बनाया। बाद में भामाशाह एवं ताराचन्छ ने हल्दीघाटी के युद्ध में सेना का नेतृत्व किया था। दिवेर के शाही थाने पर हमला करने के समय भी भामाशाह ने नेतृत्व किया था। बहादुरी के साथ-साथ भामाशाह ने बड़ी कुशलता से राज-कोष को कई अलग-अलग स्थानों पर छिपा कर रखा था और उसका ब्यौरा वे एक बही में रखते थे। इसी कारण अकबर और जहाँगीर को मेवाड़ से लूट में कुछ भी नहीं मिला था। भामाशाह आवश्यकतानुसार उन्हीं स्थानों से धन निकाल कर राज का खर्च चलाया करते थे। अपनी मृत्यु (16 जनवरी 1600) के पूर्व उन्होंने अपनी पत्नी को बही देकर कहा था कि इसे सुरक्षित महाराणा जी को पहुँचा देना। ऐसी विरल ईमानदारी एवं स्वामी-भक्ति के फलस्वरूप भामाशाह के बाद उनके पुत्र जीवाशाह को महाराणा प्रताप के पुत्र अमरसिंह ने भी प्रधान पद पर बनाये रखा। जीवााशाह के उपरान्त उनके पुत्र अक्षयराज को अमरसिंह के पुत्र कर्णसिंह ने प्रधान पद पर बनाये रखा। इस तरह एक ही परिवार की तीन पीढ़ियों ने मेवाड़ में प्रधान पद पर स्वामीभक् िएवं ईमानदारी से कार्य कर जैन शासन का मान बढ़ाया।

महाराणा स्वरूपसिंह एवं फतेहसिंह ने इसपरिवार के लिए सम्मान स्वरूप दो बार राजाज्ञाएँ निकाली कि इस परिवार के मुख्य वंशधर का सामूहिक भोज के आरंभ होन से पूर्व तिलक किया जावे।

जैन श्रेष्ठी भामाशाह की भव्य हवेली चित्तौड़गढ़ तोपखाना के पास आज जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है जिसका संलग्न फोटो उनकी समृद्धि एवं राज में गौरवपूर्ण स्थान को दर्शाता है।

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Chapters (चित्तौड़गढ़ & जैन धर्म)

  1. जैन धर्म का गौरव स्थल
  2. जैन श्रद्धालु
  3. पूजित जिन मंदिर
  4. महान जैन आचार्य
  5. दानवीर जैन श्रेष्ठी
  6. चित्तौड़ में रचित जैन साहित्य
  7. शिलालेख एवं प्रशस्तियाँ
  8. रोचक एवं ऐतिहासिक तथ्य
  9. परिशिष्ट
  10. चित्तौड़गढ़ दुर्ग का गाइड मेप
  11. भक्तिमती मीराबाई
  12. जैन धर्मशाला
  13. श्री केसरियाजी जैन गुरूकुल

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